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सभी प्रकार के पूजन, दोष निवारण एवं मांगलिक कार्य
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मंगल दोष
मंगल दोष ज्योतिष शास्त्र में एक महत्वपूर्ण ग्रह दोष है जो किसी व्यक्ति के विवाह के जीवन में प्रभाव डाल सकता है। जब ग्रह मंगल (मार्स) किसी व्यक्ति के जन्मकुंडली में पाप स्थिति में होता है, तो उसे 'मंगल दोष' कहा जाता है। यह दोष विवाह के प्रदर्शन और सम्बन्धों में संघर्ष का कारण बन सकता है। मंगल दोष के कुछ प्रमुख प्रकार हैं, जैसे कि 'आन्त्य मंगल दोष', 'दृष्टि मंगल दोष' और 'चंद्र मंगल दोष'। इन दोषों के विवाह के समय पर सावधानीपूर्वक देखने की सिफारिश की जाती है ताकि विवाह संबंधों को शांति, सुख, और समृद्धि मिल सके। ज्योतिष में कुंडली में मंगल के स्थिति का महत्व बहुत होता है, और इसका ध्यान रखना जरूरी होता है। मंगल दोष के प्रभाव को कुंडली में अन्य ग्रहों के स्थिति और उनके प्रभाव के साथ मिलाकर देखा जाता है। उच्च और नीच के स्थानों पर मंगल का प्रभाव भी विवाह और संबंधों पर प्रभाव डाल सकता है।
काल सर्प दोष
काल सर्प दोष एक ज्योतिषीय अवस्था है जो किसी व्यक्ति की कुंडली में योग बन जाता है जब सभी ग्रह एक ही कुंडली में एक ही दिशा में स्थित होते हैं। इस दोष का माना जाता है कि इसके प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में समस्याएं और चुनौतियाँ आ सकती हैं। काल सर्प दोष का प्रभाव व्यक्ति के स्वाभाविक जीवन को प्रभावित कर सकता है, जैसे कि स्वास्थ्य, प्रोफेशनल ग्रोथ, परिवारिक सम्बंध, और विवाहित जीवन में समस्याएं आ सकती हैं। यह दोष प्रभावित कर सकता है किसी की सामाजिक स्थिति, करियर, आर्थिक स्थिति, और स्वास्थ्य। यह ज्योतिषीय दोष होता है, जिसे शास्त्रों में विशेष उपाय करके निवारण किया जा सकता है। कुछ लोग इसे ग्रहों की विशेष उपस्थिति के फलस्वरूप समझते हैं जो किसी व्यक्ति के अनुकूल नहीं होती हैं और उसके जीवन में विपरीत प्रभाव डालती हैं।
रुद्राभिषेक
रुद्राभिषेक एक प्राचीन हिन्दू धार्मिक आचरण है जो भगवान शिव को समर्पित किया जाता है। यह धार्मिक अभिषेक क्रिया मुख्य रूप से शिव पूजा के भाग के रूप में किया जाता है, जिसमें श्रावण मास के सोमवार को अधिक प्राथमिकता दी जाती है। इस पूजा को समर्पित करने के पीछे कई महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक कारण होते हैं, जिनमें शिव की आराधना, उनकी कृपा का आशीर्वाद प्राप्त करना और अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि को सुनिश्चित करना शामिल है। रुद्राभिषेक में कई प्रकार की सामग्री का उपयोग किया जाता है, जैसे धारा जल, दूध, दही, घी, शाही जल, गंगाजल, धतूरे के पत्ते, बेल पत्ते, चंदन, रक्त, मिठास, फल, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, धनिया, धान्य, तिल, उड़द की दाल, मिश्री, खजूर, चावल, अश्वगंधा, बीजे, खिली हुई दालें, मक्खन, दूध का धारा, नरियल का पानी, पंचामृत, त्रिफला, संधिवेल, कपूर, लौंग, इलायची, बादाम, पिस्ता, सफेद फूल, रोटी, राशि, सफेद धागा, श्रृंगार, माला, चंदन का वर्ण आदि। यह सभी सामग्री किसी प्रकार के पूजा के समय उपयोग की जाती है और उन्हें ब्राह्मण पंडित या पुजारी द्वारा धार्मिक मंत्रों के साथ उपयोग किया जाता है।